जबार तू बुढ़ळी
ह्ववे जालि
पक्यां लटुला
डगमगकार सुफ़ेद मुंडी ल्हि
चुलाण सामणि बैठिं
उनिंदि ऊँगणि होली
तबार
यीं किताब थैं
उठै लियां
अर सौजि-सौजि पौढ़ी लियां
अर
सुपन्यां देख्याँ
वीं कौंळी स्वाणिलि नजर को
ज्व कब्बि तेरि आंख्यूं मा छौ
वीं नजरै गैरै बारा मा सोच्याँ
जै गैरै मा कति ज्वान ज्यू डुबिन हो
कति लोगोंन पिरेम करि हो
तेरा स्ये मनमौण्यां बगत दगड़
अर
झूट्टा या सच्चा पिरेम से
चैन हो तेरि सुंदरता थैं।
पर
एक आदिम छौ
जैन पिरेम करि
तेरा भितरै पावन आत्मा दगड़
बगतै भताक खांदि
बदलेणि तेरि मुखड़ी पीड़ा दगड़
अर
जबार तू तै आगै झौळ मा
पढ़णू झुकलि
तबार तू
जरा उदास ह्वे बड़बड़ालि
कि ऐरां दा
पिरेम बि कनु भाजिगे
दूर काँठियूं चुळख़्यूं पर
अर गैणा भीड़ मा
वीन अपणि मुखड़ि छिपैली ।
अनुवाद : बलबीर सिंह राणा 'अडिग'