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Friday 25 December 2020

मनखी अर राक्ष गण

 


जीतु बर्तवाल अर संतोषी बर्तवाल एक पाथु दुसरु चार सेर, कब्बी छत्तीस त कब्बी तिरसठ। बल भगवानल मिलै जोड़ी एक अन्धू एक कोड़ी। कद काठी मा मर्द गळदमु गोलु अर जनानी चटपटी छिपाड़ी। उमर मा द्वीयेक सालो फरक। रंग रुप त बिलकुल एकनस्या कळसौंळा कनय्या। द्वी जातकों मा चार जातकों का गुण। कै दफे घुघता घुघती एके घुर घुर दगड़ हैके घुघूऽऽती। कै दफै एक सुर मा़ अड़काट ह्यांऽऽ, ह्यांऽऽ क्वासां हिलांस। कबैर तोता मैना एक गळज्यू पाणि गुटुर गुटुर। अर बाज बाज बगत निरखालिस सिंटुला एक किबचाट कज्ये झग़ड़ा, माच्यो धिच्यों रांड भांड।

      द्वी बीसी तलक कु आचार विचार त इनु तैलु सीलु रैन पर येका बाद जनी जनी घ्वोळा पौथुला अयांणा सयाणा होण लगिन अर द्वीयें उमर अदरण अनुभौ बाटा जाण लगिन उनि उनि हल्ला रौळी जादा। जख दिर्घम धीर ह्वोण रौण खांण छयी वख अजाण बाळोपनो जन छिंजयाट। निरा सिंटुला। उच्याट्या गौड़ी जन सुदी ठ्यां लत़, अर मर्खु बल्दक जन सुदी सिंगा घच्वोळ। एक हैका तैं झर्रऽ-झर्र। काम धाम स्यूं पर जुत्यां बेलौं जन बाकि बगत खित्र्यां बल्दों खिर्त। एक हैके बाते सै ना सावो। छवऽटी म्वटी बात पर घचर पचर, कचर कचर। बिगैर बात कु भारत पाकिस्तान अर बिगैर खून ख़त्री कु माभारत। चैबीस घंटा मा वा छः सात घंटा निन्दो टेम गाळ ना जयां। माच्यो धिच्यो अर रांड फांड आम बात ह्वेग्ये छै।

      उन त टिपड़ा मिलोण बगत पंडेजिन बतै छै कि भै गरह नछतर से त जलमपत्री सेंड परसेंट फिट, इन मिल्यां जन घट्टा क जन पाथर चप्पऽ। भाग मा द्वीयूँ कु कुबेर विराजमान, खूब फलण फूळणों जोग छन। पऽर जजमानों ! गण जर्रा सि काण म्योण कनु म्येल्यौ। नोनु मनखी अर नोनी राक्ष गण ह्वेग्यां। द्वीयूं मा कब्बी कबार झगड़ा फिरसाद होणें रैलु। चलोऽ इत्गा बड़ी बात नि यीं कु इलाजो बि विधान छैं छिन। कैरीं कि कारण कु निदान होन्दन। बागदाना बगत एक तांबे तौली अर द्वीयूं फिट नाप क पिंगळु बस्तर ल्ये लियां वखिमु निबटे द्यूला तुम चिन्ता ना कैरा। उन बि कैकी गिरस्थी बिगैर कज्ये झगड़ा रैन्दी क्या। यो त युंका टिपड़ा मा ऐग्ये तब ब्वनु निथर तखुन्द देशों मा बिगैर टिपड़ा का राजन बाजन रैन्दा लोग। गंवार मन कु थंवार कन पड़दू। अर द्वी झणों का बीच जर्रा तू तू मैं ना ह्वावो त बात ही क्या ? इलै त स्वेण मैंसा तै कज्ये कज्याण बि ब्वल्ये जान्द।

      जीतु (जितेन्द्र) बारा पास कना बाद नौकरी वास्ता सैर चलग्ये छै, कुछैक साल मस्टोल मा रौणा बाद जलनिगम मा परामानेन्ट ह्वेगी छै। संतोषी सात भै बेंणियों घिमसाण मा जेठि बांठी होण से दर्जा पांच बाद इस्कूला बाटा ढुंगु फर्यक्याली छै पर स्या ठकुरेंण घर गिरस्थी बाटा खड़िंजा खूब बिछौण लगीं छै। संतोषिन अग्ने स्कुल त नि पढ़िन पर बाळापन बटिन खूब समझ हौंस रौंस चंट चालाक छै। किरमुळा जन लकार्या अर हिगंतर्या। यीं गुण होण से वा जिदेर बि भिज्यां छै। कब्बी कैन वूंकि बाड़ी सगौड़ी पुंगड़ा जर्रा उच्छयाद क्या करिन कि ब्वै से अग्ने द्वी लपाग पटम पिटे चटमताळी गाळयूं बर्खा कर्दी छै। लोग सीं नोनी बबर्राट सूणी हकदक रैन्दा कि भ्वोल स्या सौरास जाली त न जाण क्या कर्ली। नोनी कि छत्ती ब्वै बाबान जने उठण क्या देखी कि उनि हाथ पिंगळा कने कतामती होण लगिन। ठिक सतरा साल मा नोकरी वळु नोनूऽ रिस्ता क्या ऐनी स्यूं डवला सौरासा पौंछे दिनी।

      सौरास पौंछन्दा सयी संतोषिन गिरस्थी पर चम्म अंग्वाल भर्याली छै। मैत बटिन ब्वैन गिरस्थीऽ बाटु खूब दिखै सिखै छायी, भैर बण बोट, डोखरा पुगड़ी, रिस्ता नातु, बटिन भितर साट्यूं कुठार, झंवरा कुलाणा, ड्वार सतकार अर चुलाणा परे बाड़ीऽ भद्याळी तलक। देह मा स्या जत्गा कमति छै नाक मा वत्गा लम्बी तड़तड़ी। उतळु ज्यु र्खिस्याळु मन। दुन्यां से़ अपणी अग्ळयार चूंडी ल्येन्दी। काम काज भारा बोझ से सरील पर दया ना। किर्मुली हिकमत खिर्स का पिछने शरील कु जौळ बणे ढिक्का पिसणु रैन्दू पर क्या मजाल कि गिचू ऐ ब्वै ब्वली द्यो। सर्रा गौं मा जित्वे ब्वारी काम काजे हाम ह्वेग्ये छै। गौंका दाना सयाणा छुंवी लगान्दा कि ब्वारी ह्वो त जित्वे जन ह्वो। सूत ब्येन्ते इनि कि कैका ठट मुख नि द्यखदी अर नाक लकार मा कैतें मुख नि लगान्दी। गौं का युं लंपट छवरों तैं त वा ब्वारी गुरु ऐन भै। निथर यूं कमिनोंन नयां नयां ब्वारियों कु निखाणी कर्युं रैन्दू, अरे घ्यूर भौजी हम बी रयां पर इनि लंपट बलार जमानु चरितर छी छी छी। नांगों जमनु।

      संतोषिन पुंगड़ों मा अपणु औड़ू संतरा बिलस्तान नापयली छै। एक आद साल बाद ही सासु से अगल्यार्या होण लगिन। जित्वे छुट्टी औण पर पैली झवळा तमळु खिंचण बैठग्ये, मालिक तैं हिसाब किताब पूछदी अर लूटी चूंडी बैंक पोस्ट आफिस मा अपणा तर्फां कु भबिस्या निधी जमा बि कर्दी।

      अब सौजि सौजि मुबैल का दगड सैरों बटिन पाड़ मा बी ना ना परकारे हव्वा बगण लगीं छै। चस्साऽऽ डाना गंवाण्यूँ पर बी सेरों कि गरम हवै ताति लगण बैठग्ये। गौं मा नयां रिटेर हौलदार सुबदारों ढसक फसक ना मा सामिल ह्वेगी, फौज्योन जिन्दगी भरे तप तपस्या देरादून काशीपुर जना सैरों मा पांच विस्वा मा बिछाली छै। सरकारी करमचार्यों कि नौकरी उब अर परिवार उन्द चलिग्ये छै। नाक नाकी पराबटी वळा बि दिल्ली बम्बे एक कमरा मा चारपै फौल्ड करि द्वी तीन मनख्यों कि रस्वै पकाण लगग्ये छै। त यामा संतोषी तैं पठाळ छा कुड़ी उबरा कख संतोष होण छायी। पांचेक साल मा घ्वळणा द्वी पौथुल्या ऐग्यां अब द्वी का चार ह्वेग्यां छै। दिन भर जब संतोषी पुंगड़ा बटिन औन्दी त द्वी गुरमळा माटा मा लतर पतर, आंगनबाड़ी बटिन कब्बी एक खुट्टु कच्यै ओन्दू कब्बी हैकु मुंड फुटकुलु ल्यान्दू। बाळों हाल देखी वीं कि झिकुड़ी कमसे जान्दी। गरम्यूँ छुट्टयूं मा घौर अयां देशवाळी कक्या सासु कु ठसक मसक अर तैका नोन्याळों रंगत पैरवार द्येखी वींका गात सर्साट होन्दी अर अपणा नोल्याळों का पुतळण्यां गिच्चा पर माखा तैकि झिकुड़ी पर बिणाण लगि जान्दा।

      अब अग्ने वींन पक्का ठाणी कि ये दां छुट्टी मा वा (जितु) कुछ ब्वालो पर ! मैन यु ताम झाम पिछने लगे द्येण। संतोषिक समझ बतौंणी छै कि युंकि पितर भगत बुद्धिन गौं मा बच्चों भबिस्या खराब कन । जनि अफुं छाँ फोर्थ कलास, साब लोगों अग्ने पिछने घुमणा उनि यूंन म्यारा नोना बि बणाण। वींन साल भरे द्वी तीन छुट्टी मा जितु कु खूब मुंड खैन, भलै बुरै बिंगैन। आखिरकार ना नुकर करि जितु ल ठिक असाड़े तीन गते चैमासे रगड़ बगड़ से पैली घ्वळयोणु उठैन अर पट देहरादून किराया कमरा मा धैर दिनी। अर द्येळी पर छौड़िग्यूं बुढ्या ढांगा मेड़ी बुबा, रमणान्दा गाजी भर्यूं ग्वठ्यार अर नाजा कुठार। बूड़ बुढ्या दगड़ रैगिन वूंकी ज्वानि धत्यांयीं आतुरी, सूना उबरा डंड्याळी मा नात्यूं किबचाट किलकार्यूं याद। बल्द बैच्यां जन खौळया रैगिन वा, ना त रुवे ना हैंसी, बस ज्यू से भल होण खाणों आषीश वचन द्ये विधै करिं नातियूं तैं। 

      बुद्धि कि तेज तरार संतोषी सैरों कु हळण चळण चट बींगी बि छै अर समझी बि। साल भर मा ही परफेक्ट देशवाळी पाड़न बणग्ये। नोनु का किताब अर छुंवि बत से हिन्दी अंग्रेज्या शब्द गढ़वळी लबज मा रल्यौ मल्यौ होण लगिन। सौपिंग सापिंग मा दुकानदरों तैं खूब ऐंठदी, मोल भौ नाप त्वली कर्दी। बल, भै साब हमको ऐसा वैसा मत चिताना मुझे सब पता है तुम पाड़ियों को फूल बनाते हो।

जीतु फौर्थ कलास कर्मचारी, तनखा त कम छै पर विभाग मा बड़ा साबों दगड़ मेल मिलाप भलु, सद ब्याहार का परताप भैर सौटों पर काम बराबर मिल्दू, अर तैका परताप असाड़ै गाड़ कु छलार संतोषी का बट्वा तक पौंछण लगिन। इना मौका तैं संतोषी कख चुकोण वळी, द्वी झणोन इना उना समझि बुझि मोल भौ कैर भल जगा मा जमीन खरीदी अर लग-लग्यां मकान बि खड़ू करि दिनी। अब पक्का राजधानी आसन बासन ह्वेग्यां।

      जिंदगी सैरों भिभड़ाट मा खूब दौडणी भागणी छै, पर ! यूँ राक्ष गण अर द्यो गण कु आपसी ब्यौहार मथि कानी सुरुवात ही रैन। चट बांदरों जन भिड़ी जान्दा त फट सौ सल्ला करि चाटम चाट। पैली पैली त नोना बाळा मम्मी पापा कु कज्ये से डरदा छाँ पर डैली ढर्रा से वा बि धित्यैग्यां छां। जु मनखी भैरो जतिगा भलु होन्दू भितरो उत्गा कज्येख्वोर। द्वीयूं छुवीं इनि। द्वीयां अथीति देवो भवः का सिद्धान्त वळा। मेमान नवाजी आदर सत्कार मा बड्या। अपणा घौर से न क्वे खाली हाथ जाण चैन्द अर ना अणमनो। द्वीयां का मैत सौरास, गौं से सैर तलक बर्तवाल निवास पर मैमाने लंगत्यार लगी रैन्दी। द्वीयूं अपणा अपणा बाटी ल्येण देणु कंपुटेसन रैन्दू। एक कुठाराऽ नाजा सब्बी द्यैतार।

      निमाणा ब्यौहार इमानदरि से जीतु अपणा मोला अर मुल्की परबासियों का बीच सुलझ्यूँ समझदार भल आदिम छै। मुलक्या परबासी सुसैटी कु वा खजान्ची बी बणग्ये। दगड़या कु मनख्यात इनु कि सब्यूं का सुख दुख कौ कारिज मा हाजरी ह्वे जान्दू अर मौ मदद अलग कर्दू।

      द्वी झणें उमर ढै बीसी से अग्ने पौंछग्ये। नोना स्कूल से कौलेजों मा पौंछग्यां। जित्वे मथि वळि आमदनि जेठा मैना नोळा तलौ बणग्ये, विभाग निजीकरण मा जु चलग्ये छै। भैर फिल्ड बटिन भितर औफिस मा परमोसन क्या ह्वेन खिस्सु हौर जादा खणमणकार। जने बाल बच्चोंऽक इस्कूल कौलेजों खर्चा बड़िन उनि सुख्खी तनखा मा टिम टाम छै होणु। पैल्ये आमदनिन जु लम्बू हाथ कने आदत डाळीं छै वींतै थौड़ी खिंचण पड़िन पर नाक नाकी आर सार से गाड़ी चलणी छै खिंचणी छै। बल संतोष से बडु सुख कुछ नि होन्द, संतोषम् परम सुखम्। जित्वे अर संतोषिक उमेद अब उग्दा सुरज नोनो पर छै, खुट्टा टेकला त फेर दिन ऐ जाला।

      समै का दगड़ जित्वे समाज मा उठण बैठण ह्वेन मान परतिष्ठा बड़िन पर यीं परतिष्ठा का पैथर आदत कखि हौर भाजण लगिन। आयां दिन लालमणी कु गुलाम ह्वोण लगिन। क्वे दिन इनु नि छै जै दिन पार्टी दावत न ह्वो। कैका घौरे एक दिने पार्टी सार्टी इजत कु सवाल जु होन्द, पार्टी द्यैतारन छक्की पिवोण बि अर खलोण बि पर जित्वै हमेस क भैरे दावत भितर घावत होण लगिन अर वा महा झांझी बणग्ये। 

      अपणु नि देखण हाल हैका तैं देण स्वाल, आम दुन्यों आचरण ठैरु छुंवीं बत अर उठण बैठण मा हैका तैं ताणा अर उपदेस देण मा कुछ लोग माथमपुर्सी चितान्द। जीतु का कुछेक दगड़या बी इनि सैणा ग्वोरु भ्येळ हकौंण बळा छया। बैठक पार्टीयूं मा क्वी ब्वल्दू यार बर्तवाल जी जनान्यूँ तैं जादा मुख लगाण ठिक नि होन्दू। क्वी अरे यार बर्तवाल जी कु खाणु बिगैर ब्वारी गाळी नि पचदू। क्वी एक लपाग हौर अग्ने रामचरित मानस पर, बल ढोल गंवार शूद्र अर नारी, सकल ताड़ना के अधिकरी।

      तौं मास खत्ता जोग्यूं तैं वा लाटु बिंगी नि साकी। तौंकि बात पर खाली दाँत निपोड़ी हौं यार सच्ची ब्वोली भौंर पुर्येन्दू अर तबार तलक पैग चढ़ाणे रैन्दू जबारी तलक बाज जिबड़ा दगड़ कुस्ती अर खुट्टा आपस मा चांचड़ी नि खेलण लगदा।  

      राति जितु जब लंगतड्या मारि घौर पौंछदू त संतोषी मेडम कने सौण वळि, राति इग्यारा बजै आवो या बारा। मेडम ल अपणी फंचि देखदा ही बिसाण छ त बिसाणें च। झांज्यूँ दगड़ झांझ फांज मा चुप रौण ठिक रैन्दू स्या नि समझदी छै, कखि भ्वोळ सुबैर ठंडू ना ह्वो इलै तातु तातु डामण पर विस्वास कर्दी छै।

      झांझ मा जित्वा दिमाग तैं हौर बात त याद नि रैन्दी छै पर नारी ताड़ण के अधिकारी खूब याद रैन्दी फिर क्या नाली ताळन के अधिकाली ब्वोलि बौंळा बिटे खड़ू ह्वे जान्दू। या मा कज्याण कूल त कज्यै सौला पाथू। अग्ने सौजि सौजि गिचे आग हाथ मा औण लगिन, कब्बी संतोषी मेडम जितु तै झिंझोड़ी देन्दी अर कब्बी जितु एक आद झपाक लगै देन्दू। उन त क्वे बी आदिम हैका घौरा क मामला मा हाथ डाळण ठिक नि चितान्द फिर बी यार आबत अर भल पड़ोसी इसारा इसारा मा समझांदा रैन्दा कि तुमारु इनु भारत पाकिस्तान ठिक नि। पर द्वीयूँ शीष फैरो उलंघन जारी रैन्दू।

      आज जीतु तैं थाणा बटिन छुड़ोण खुणें जाण पच्छयाण वळा पौंछयां छाँ। तैकु लौकअप का भितर मुंड खाड़ डाळयूँ छै। मामला नशाखोरी, घरेलु हिंसा अर नारी उतपीड़ण कु छै बल। ब्याळी रात जीतु हौर दिनो से जादा धुत ह्वे घौर पौंछिन त द्वीयूं मा सदानी चारे माभारत ह्वेन, जादा झांझ मा तैकि बीपी इनि चढ़ी कि तैन संतोषी कळनस पर निगुरी पटाक मरिन अर संतोषी पथऽ भुयां, बाज खास बन्द। कुछेक टेम बाद मैजुळ बटिन नोनु ल हल्ला नि सुणि त दौड़ी दौड़ी मुड़ी ऐन। माँ तैं बेहोस देखी हक्का दक्की। बड़ू वळु जादा समझदार छै, पिता फर गुस्सा त भौत छै औणु पर वेन चुप घ्वोट मारण ठिक समझी, माँजी तैं होस मा ल्यणें खातिर खबसाई खुबसाई मुख पर पाणि छिटा छाटा दिनी पर संतोषी अड़कट्ये रैन। पर डोरिन द्वी छवटा नोनु ल रुवाट चिल्लोट मचैन। रुवोण ध्वोणें आवाज बगल पड़ोस तक पौंछिन।

      बगल पड़ोस मा एक जनानी सामजिक कार्यकर्ती टेपे छै वीं तै पता त छै कि यूँ कु सदानी हाल इनि च पर आज रुवाट कणाट सुणि वा हौर पड़ोस्यूँ दगड़ झटपट तख पौंछिन। बेहोस संतोषिक हालत देखी मैडमल चट पुलिस तैं फोन लगै घटना ब्यौरा दिनी। पुलिस ऐन जीतु तैं थाना अर संतोषी तैं डाक्टर मु लिगिन। घंटा द्वी घंटा मा संतोषी त होस मा ऐ घौर पौंछिन पर नशा अर घरेलु हिंसाऽक मामला मा जीतु लौकअप का भितर चलग्यूं।

      हैका दिन लौकअप का भैर बटिन ग्रिल पकड़ी नारी ताड़ण के अधिकारी कु उपदेस देण वळा जीतु तैं समझाणा छां। यार कन आदिम छै तु अपणी गृह लक्ष्मी मा तागत दिखाणु तति पौंठा पराण छै त मोला क पप्पु बोस मा दिखो जैन सर्रा मोले कि निखाणी करीं। हैकु ब्वल्दू यार बर्तवाल जी जखमु घड़ु वखमु हिल्लो त होन्दू छै पर जनानी फर हाथ उठोण बिल्कुल बेवकूफी वळु काम च। तीसरु - अरे भाई जबारी मि समझान्दू छै कि कलौ काल होन्दू पर तू ठेरु मर्द अब खा जैले हव्वा। हम त पूरी कोसिस कना कि मामला यखी पुलिस तक निबटी जौं पर देखा पुलिस माणदी कि ना। इन बुना बल झांझ्यूं तैं सजा होणे चैन्द। चैथु - यार जितु त्वेतैं त मि सब्यों मा समझदार आदिम समझदू छै पर त्वेन हमारु बि नाक काटिन, यार जब पचदी नि त किलै प्यून्दू इन। भाई पुलिस मा भूल करि बि हमारु नौ ना लियां निथर अग्ने तु स्वोची लियां।

      ब्याळी तक टेबल मा जबरदस्ती मेरा वास्ता प्ये ल्ये वलौं मुख से नाना परकारे बाते सुणि जीतु अपणी करणी पर मुंड खाड़ डाळी पछताणु छै कि मास्तो ना मि भला आदिम का चक्कर मा पुळक्येन्दू ना आज मेरी कूड़ी इनि आग लगदी। अपणी परबुद्धी पर ते तैं गुस्सा छै औणु।

      कुछेक देर बाद पुलिस वळा संतोषी तैं बयाना खातिर थाणा ल्येन। द्वी झणों तैं आमणी सामणी बिठै गिन। द्वीयें नजर आपस मा मिली त पछतौ मुख पर दिखेणु छै। वूंन नि सोचि छै कि हमारु स्यंटुलाचार एक दिन भैर यनु नांगा कर्लो।

पुलिसन संतोषी बयान ल्येन्दा पूछी।

दरोगा - क्या यु आदिम सदानी दारु प्ये लड़ै झगडा कर्दू ?

संतोषी - ना

दरोगा - क्या येन पैली बि तुमु पर हाथ उठैन।

संतोषी - ना

दरोगा - त ब्याळी येन किलै मारि तुमतैं।

संतोषी - मारि नि साब किचन मा मेरु खुट्टु चिफळयूं अर भुयां चौंकुला पर थोड़ि लगग्ये छै जै से मि बेहोस ह्वेगी।

दरोगा - हमुन सुणि कि तुम द्वीयां डेली झगड़ा रगड़ा कर्दा सच्ची ?

संतोषी - साब, दुन्यां चटक चल्दा तै चड़यूं अर सौजि हिटदरों तैं सड़यूं ब्वळदी। जखमु द्वी भांडा होन्दा बजदा त छैं च या त सब्यूं भितरे बात होन्दी। उन बि हम गण मा मनखी अर राक्ष गण छाँ, छवटी म्वटी बात त होणें रैन्द।

दरोगा - ओऽह या बात चा, गण की बात जलमपत्री मा रोंण द्या मेडम जी ब्यौवार मा देव अर मनखी गण बणि रावा। चलो आप तैं अपणा पति से़ क्वे सिकैत ?

संतोषी - ना साब बिल्कुल ना। जिन्दगी दगड़ा दगड छा ढळक्यां तक पौंछीग्ये आज तलक क्वे सिकैत नि ह्वेन त अब क्या होण। अपणु आदिम अपणु होन्द जन बि ह्वावो।

दरोगान जितु से - हाँ भयी आपकी पत्नी तो सच्ची पतिवर्ता है बिल्कुल खिलाप नहीं है आपकी क्या सफाई है ?

जितु - क्या सफै होन्द साब यींका परताप त मि डाना मुल्को आदिम आज सैर मा द्वी रोटी खाणु छै निथर मेरी औकात क्या छै।

दरोगा चलो आगे दारु पर कंट्रोल करो और रोटी को ढंग से पचाओ, बदहजमी की चू घर से बाहर नहीं आनी चाहिए, समझे ? ध्यान रख्यां दुबारा इनु केस मैमा ऐन त द्वीयूं तैं हवालात मा डाळ द्यूला। खड़ू उठा जावा अपणा घौर। आज फिर संतोषी कि बुद्धी विवेकन घौर ओडळु से बच्याली छै। पैली बार यूं स्यंटुलों आँखी एक हैका तैं डबळाणी छै।

 

@ बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’


 

9 comments:

  1. वाह अडिग जी ! मज़ा ऐ ग्ये कानि बाँचिक ! ठेठ लाजवाब बिगरैली भाषा ! नायाब शिल्प ! 👌👌

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  3. 🙏🌺लेखन कमाल कु , कन कना शब्दु कु जंकजोड ,,कहानी लाजवाब , सुखांत अंत दगड । कतगा जगह शब्द इन्न कि पैढि कै आँखयूं म पाणि रीट ग्ये ।

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    1. सहृदय आभार भुला सते पूरी कानी पढ़ी किन आपन मितें सास दिनी।

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  4. ज्यू से आभार अंदरणीय ममगांई जी, भुला सते आप सुधी पाठक मेरी कलम तैं पे्रणा छन, ज्यू से धन्वाद कर्दू कि आप मेरा पेार्टल पर अयां। अग्ने स्नेह पिरेम बणि रावो जी।

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  5. आदरणीय भैजी श्री बलबीर सिंह राणा जी परैं गढ़वाळि कथा साहित्य कु सौ सिंगार कन्न वळा एक उत्कृष्ट कथाकार की अन्वार वून्की अब तक पढ़ी कथाओं मा साफ साफ देखे जा सकद। श्री राणा जीक लेखनी से गढ़वाळि साहित्य तैं एक हौरि रत्न कथाकार रूप मा मिली ग्ये जौंक कथाओं मा गढ़वाळि समाज,लोकजीवन अर ठेठ पहाड़ी चरित्रों तैं सैंदिष्ट रूप मा देखणा पढ़णा मा भारी रौंस आदि।

    या लेखनी एक तर्फ मातृभाषा गढ़वळि की सेवा रक्षा मा साधनारत च त दूसर तर्फ बौड़र पर मातृभूमि रक्षा मा बि सेवारत समर्पित च अर हम सब्बि मातृभूमि अर मातृभाषा प्रेमियूं वास्ता सक्या प्रेरणा दिण वळी कलम च।

    आशा ही नि पुरु विश्वास च कि जल्द आदरणीय भैजी श्री राणा जी गढ़वाळि तैं एक उत्कृष्ट कथा संग्रै रूप मा यूँ कथाओं की फूलमाला गठेंकि मातृभाषा का श्री चरणौ मा समर्पित कारला।


    असल कलम का सिपै आदरणीय भैजी श्री राणा जी तैं कोटि कोटि नमन-मंगलकामना बधै।

    जय बद्री विशाल

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    1. सहृदय आभार भुला नेगी जी, आपक यीं पुल्बें मेरी कलम का वास्ता टॉनिक कु काम करलू। आपक मातृ भाषा अनुराग अतुल्यनीय छन। भौत भौत धन्यवाद मेरा ब्लॉग पर आणु कु।

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