उबरा मा बक्यौ
थौल सज्यूं छै, उबरा दैं कूणा पर द्यबता थान छै। जख दिवा धुपणु, चिमटा, फौड़ी, फोटो
अर पुराणी फूलों माला लटकणि छै। उबरा बीच मा बक्या माराजो आसण। अद्दा कमरा एक पुराणी
दरी बिछयीं छै पूछ कन वळा पुच्छैरुं तैं बैठणे व्यवस्था। बक्या आसणा तौळ एक दन्ना छै।
बक्या मुख समणि द्वी थाळी। एक मा ज्यूंद्याल,
फूल, पाती अर सौ-सौ रूप्या द्वी नोट अर एक पच्चासक। हैका थाळी मा पिठैं, कुछ सिक्का
अर धूप बत्ती। बक्या माराजो पैरवार द्यबता डंकरी वळ। स्यता कुर्ता भैर काळी फत्वै मुड़ी
पिंगळी ध्वोती। मुंड पर लंबी चूळ, लटुलों पर चिफळपट त्यौल, कपाळ पर लम्बू लाल टीका,
हाथ उन्द चांदी धगुला, कंदूड़ा उन्द चांदी मुरुकुला। जै टेम मि उखमु पौंछि पैली बटिन
तीन आदिम तख बैठ्यां छायी, तौं कि तबारि छाळ निवाळ चलणी वळी छै। मिन बी हाथ जोडिन अर
एक तर्फा बैठग्यों चुपचाप। पुछ्यारु/बक्या अर पूछ डाळण (छाळ निवाळ) वळा पुच्छैरुं की
बीचे बात सुणणु रौ। नीतिगत बी या ही छै कि द्वी आदिमाक बीच मा तीसरा तैं चुप रौण चैन्द
जबैर तलक वेका तालुक की बात ना ह्वावो। यख त मि द्यो थान मा जु अयुँ छै।
बक्यान अगरबत्ती उठैन अर गिच भितर कुछ मंत्र
बड़बड़ैन, अगरबती बाळी द्यबता थाने तर्फां अगरबती करि। नतमस्तक ह्वेन। द्वी हाथ मुंड
मा धरिन। मुंड भुयाँ धर्ती मा टेकिन। अर झटाऽक मुंड ऊब करि। द्वी झटाक गर्दन इने-उने
झटकेन। मुंड डकड्येन। अर जोर से होऽ.हो..होऽऽलक
की लंबी किल्कताळ मारि। दगड़ मा ज्यूंद्याल
उछाळी मुठ्ठी बांधी। बंध मुठ्ठी पुच्छैरुं तर्फा बढै ब्वोली, भगतो जख्मु समझ आली हाँ
बोल्यां। समझ नि आली ना बोल्यां। मि बाटे लाग द्यूला तुम बाटु बिंग्या फिर मि बाटु
लगौलु। ल्या... ल्या.....वचन। सिध्वा थान बटिन निरासी क्वै नि जैलु रै। होऽ.हो..होऽऽलक।
अर बन्ध मुठ्ठी सामणि बैठ्यां आदिमा हाथ मा ख्वोली।
बक्या - बौं तरफ मुख कैर, भ्वट्य्या
यु तीन पाँच को मामला किलै छिन ?, होऽ.हो..होऽऽलक,
आऽऽ थ्रुऽऽ.... ।
पुच्छैरु - (हाथ जोड़ी नतमस्तक
ह्वे) परभौ तुमुन बतौण, हम नर बांदरों क्या जाणण। तब्बी त तुमारा सरण मा छाँ अयाँ।
बक्या - अरे भ्वट्य्या यु चैपाई
नि द्वपायी कु मामला छ। मर्द नि जनानी ध्याणी कि बात छ। छै कि ना ? झम्मऽ ज्यूंद्याल
पुच्छैरुं तर्फां। समझ औणी त हाँ ब्वाला नि औणी त ना ब्वाला। आऽऽ थ्रुऽऽ.... ।
पुच्छैरु - हौं परभौ समझ औणी
तुम बाटु लगाणे रावा।
बक्या - (मुंड झटके कि) भगत
द्वी जनानियों मा कज्यै लड़ै झगड़ा छिन ह्वयूँ कु। भारी खिर्त पड़यूं च खिर्त। द्यबता
पुकारे ग्यों रे भगत, द्यबता। बक्यान ज्यूंद्याल उछाळी वूंका हाथों मा। ल्या कति छ
?
द्यबतों का ज्यूंदाळों कु बी अपणु समीकरण होन्दू साब। अगर द्वि, चार,
छः सम संख्या मा ज्यून्द्याळ ऐगि त मलप प्रश्न सुलझ्यां बाटा माने जान्द याने पूंजी।
तीन-पाँच मा ऐन त मलप मामलो खराब जटिल उलझ्यूं अर अगर एक दाणी ऐगि त समझा ज्यूंद्याळ
देण बळा तर्फां बटिन पक्की बात। पक्कू वचन। अखंड मोतिम।
पुच्छैरा भगतन मुठ्ठी ख्वोली ज्यून्द्याळ गिणी अर मुंड मा धरि। वूं
सब्यून कुछ देर स्वौचि, याददास्त ताजी करि अंदाज लगैन। हाथ जोड़ी बोली परमेसुराऽ सच्ची
बात छ।
जांच-पूछ, शंका-समाधाना का यीं तरिका मा आदिमक ध्यान खट वखि चलि जान्द
जख पैली क्वे ना क्वे वाकिया या घटना घटी ह्वली जै बात पर वेकु सक सुब होन्दन। बक्या
लाग देन्दू अर आदिम सक वळी बात तैं पुष्ठ्ठी का नजरिया से द्यखदू।
पुच्छैरु - परमेसुर ह्वे ह्वलु
जु बी होंण छै, अब अग्ने रस्ता बतावा। छाळ निवाळु कारा।
बक्यान ज्यूंद्याल उछाळी मुठ्ठी
वूंऽका तर्फां कैर बोली ल्या, कति छ ? द्यबता झूट नि ब्वोली सकदू। पुच्छैरुन ज्यूंद्याळ
देखी त एक दाणि छै, तौंन ज्यूंद्याळ मुंड मा धरिन। हाथ जोड़ी ब्वोली प्रभो अंखड मोतिम।
बक्या - भगतोऽऽ ? द्यबता घत्ययूँ
छन रे.. द्यबता। घात जैकार ह्यीं। वे दिन बटिन तै घौर मा क्वे बर्गत नि। पाळी बल्दा
स्यूं नि पैट्णा। भैंसऽक थन मा दूध नि छिन औणु। नोना बाळा चळ-बिचळ छ हव्यां पढण मा
ध्यान नि। अर अर ..... होऽऽलक, थ्रूऽऽ...। कंपकंपी थर्थराट मा, ये ध्याणी शरील उडंगर
छिन ह्वयूं, लकार नि कै बी काम पर। दिन-ब-दिन
सुखणी छ, छाती दूध नि पौजणु। च्यौंग चिड़चड़ाट जादा छन।
ब्वाला। छै कि ना ?
पुच्छैरु - परभौ सच्ची बात,
सच्ची बात। हौर दगड्योऩ बि भौंर पुर्येन। परमेसुर अब तुमुल ही सही बाटू बतौंण। वीं
बाटा जौला। जस मिली चैन्द। जन ब्वलला उनि करुला। मनखि बान्दर से गल्ती ह्वे जान्दी।
जु बी लग्यूं बिलक्यूँ तैकु न्यूज-पूज, कुखड़ी-बाखरी सब द्योला। पर ! प्रभो यनु बतावा
यू द्यबता कै जाग कै दिशो छ ? अर क्वो कु छै ?
बक्यान थकुला मा ज्यूंद्यालों तै एक अंगुठन अलग-अलग करि, तीन एक तरफ
द्वी एक तर्फां, अर एक एक तर्फां । मने मन कुछ हिसाब जनु लगाई अर मुंड उन्द उब झटकैन।
मोंण बौं तरफ करि अर चूळ मलासी हैंसद-हैंसद बोली। हाँ हाँ हँ हँ......अरे ब्वन क्या
छ, जै ध्याण दगड़ यू झगड़ा ह्वेनी वेका मैत कु वीर भैरुं कु दोस छै रे... भैरु वीर। दगड़
मा कच्च्या वीर बी छ। पूरब पच्छिम दिशा बटिन अयूँ,। रौली तरीं च द्यबतै की। फिर बक्यान तौंकि तर्फां बड़ा आँखा करि बोली टेम
पर ये द्यबता शांत नि कर्ला त। त.... अग्ने क्या कर्लो मि ब्वोली नि सकदू। अरे.. अरे
कंपकंपी थर्थराट मा, अब्बी... अब्बी त चैपायी दोष देणु भ्वोळ द्वपायी खंडित ह्वली मैंखुणि
ना बोल्यां।
भगत लोग सन्न।
छाळ निवाळ मा संतोष होणा बाद वून पुज्ये विधान पूछिन अर वखि बटिन उच्चयणु कनु वचन दीनी।
बक्याऽन एक पांच कु सिक्का, ज्यूंद्याल अर लाल पिठ्ठें एक कागज पर बांधी अर बोली भोट्या
घौर जांद सै ही नये ध्वयेन, ये पुड़िया सारा परिवारा मुंड अरोखि परोखि अर पूसा मैना
मा न्यूज पूज देणु कु उच्चयाणु कैर दियाँ। भ्वोळ बटिन फर्क नि पड़लि त मेरु नों ना लियाँ
। ल्या, झम्मऽऽ ज्यूंद्यालै छपाक तौंका मुख
पर। होऽलक।
अब वूं तीन आदिम्यूँ कु छाळ निवाळ कना बाद मेरु नंबर आयी मिन भी
150 रुप्या एक थकुला मा, एक थकुला मा इग्यारह
रुप्या डाळी, अगरबत्ती जलै अर हाथ जोड़ी अपणि संका ध्वयेन पूछी। बक्या माराजन द्वबाटा,
तीबाटा, चैबाटा ह्वे किन गाड़ गद्ना घुमे-घामे मितैं अपणा बाटा ल्ये ऐन। बल वा ध्याण
बाळापन मा गोरुं मा छै जयीं, द्वी बल्द आपस मा लडिंग, ध्याणऽन डौरिन किलकार मारी अर
तबी तै जंगळे बयाळन लियाली। अब कज्याण त दगड़ नि छै, जु पुछदू। मिन ब्वोली चलो ठिक छ
प्रभो ह्वे ह्वलु जु बी, अब समाधान बतावा, मिन क्या कन?
बक्या - अरे ! कन क्या जंगल
की बयाळ छ। बयाळ कि पूजा लय्या-मया, चुंदड़ी-मुंदड़ी, एकहड्या रुवटी चार दिशों मा चलोण,
दगड मा धौळी बाखरी धौळी कुखड़ि दे दियां। पंडेजी तैं खुस कैर दियां। फिर देखा स्या ध्याणी
मुखड़ी फर चळक। दुर्सुपन्यां खतम। चळविचळ स्वाँ। अर हैका साल दूसरु जुंगडू तैयार धैर्यां।
‘काणा त्वेखुणी क्या चैणा द्वी आँखा साणा’ मिन बी हाथ जोड़ी पंद्रह हजारे फंच्ची बांधी
अर किनारा बैठग्यों। पंद्रह हजारे फंच्ची इलै कि घौर बटिन जोर छै संका कु कि ब्वारी
मुख गात पर दाद खाज ह्वोणी अर देवै दारु कु फरक नि। घौर वळों कु मन रखण तैं मिन बोली
चलो आज यीं बाटा बि कुछ अनभौ लिये जावो।
अब मेरा बाद नंबर आयी एक बौडी कु। बक्या मराजन सुरवाती परक्रिया पूरी
करि अर बौडी तैं ब्वोली।
बक्या- दानी सयाणी ध्याण जखमु
समझ मा आली त हाँ बोल्यां नि आली त ना बोल्यां।
बौडी - कंयारी ह्वे परमेसुर
मेरु नोन्याळ ठिक कैर द्यावा। हूंण खाणो बाटू बतै द्यावा। अबाटऽक पाणि कूल बद्यै द्यावा।
ज्व बी छ जखौ बी छ, जति मांगलो वति द्ये द्यूला, आखिर आस पर तुमु मा अयूँ माराज। बक्यान मुंड-मांड झटकायी ज्यूंद्याल पर ज्यूंद्याळ
उछाळी, बुडळी तैं गाड़, गदना, द्वबाटा, चैबाटा, भैर भिर्त सब्बी तर्फां ल्ही बौडी मन
टटौली टटाळी दोष गिणाई पर ! बुडळी हाँ नि ब्वन्यां।
सैद यीं उमर तक वा ना जाण कति बक्या पुछैरों तैं छपोड़ी मनख्यांण छै मि जाण। बक्या जै
कु दोष बताणु बौडी वीं द्यबता पैली पुजणे बात ब्वनी रे। असैमति देणी रै, बक्या सवाल
पर ना ब्वनी रै। अब बक्या करों त क्या करों, बड़ी ठीड गेख्याण ऐन या आज।
देखा साब फिर भी यीं बक्या पुछ्यारा लोग अफूं मा पक्का साइकोलोजिस्ट
होन्दन समणि वळा मुख का भाव भंगिमा देखी कै ना कै बाटा लगै ही देन्दा। हमर पाड़ मा सब्यों जीवनचर्या एकनस्या, सब्बी एक
धर्म का लोग, गाड़-गदना, द्वबाटा-चैबाटा, धार-वार, एड़ी-आँछरी, नर्सिंग-भैरों एक जना।
सब्यों कु एकी हर्त-कर्त। जमीनी बनोट अर द्यबता मानिद बरोबर। भले नौ अलग अलग ह्वावो।
बक्या पुछ्यारा या गणत कन वळा समणि बैठ्यां आदिमें हाँ अर ना मा वेकु जबाब ढूँडी देन्दा।
हाँ, ना ब्वलण मा आदिमें दुख्येणि नस पकड़ी लिन्दा।
विस्वास बड़ी चीज छ साब, यो ही आस्था से ईलाज कु मनोवैज्ञानिक कारक
बि होन्दन। बीमारी इलाज त दवै-दारु मेडिसिन कर्ली पर मानण वलूँ का अटल विस्वास होण
से इन जांच-पूछ, पूजा-पाठ से संका कु समाधान होन्द जै से दवै-दारु असर छांट दिख्येन्दू।
मनखी कु विस्वास ही च जु वेका बंध्या हार्मोन्सों तैं रिलीज कर्दू। विश्वासा मनखि मा
सकारात्मकता लान्दी फेर मनखि पराणी निराशा से आशावादे तर्फां उन्मुख ह्वे जांद। ये
कु फर्क मनखि सोच, वेका काम कर्मों पर पड़द, जै कारण प्रतिकूल हालातों मा अनुकूल प्रभाव
सुरु ह्वे जांद।
बल ‘दुःखी कु वेद प्यारु‘।
जब आदिम पर गौळ-गौळा ऐ जांद अर कै बी बाटा जश नि मिल्दू त आखिर मा वा संका का तर्फां
चली जान्द अर संका निवारण आस्था आध्यात्म से अग्ने कखी नि। टॉप मैन आईडियल धरम कु श्रेष्ठ
पुरुष भगवान, द्बता। बाल भर संका पाड़ खड़ू कैर देन्दू। सक से बड़ू जैर कुछ नि। यां ले
आज बि पाश्चात्य रंग मा रंग्यां परबासी भै बन्द बि इना सकस्याट धकध्याट दूर कना वास्ता
कब्बी कब्बी गौं घौर बौड़ी जान्द।
परबल विश्वासा छ त आध्यात्म बल से जश जरुर मिल्दू ये मा क्वे सक नि।
हाँ अपणा कर्मों पर सकस्याट धकध्याट नि ह्वयूँ चैन्द ‘माणि किन भगवान नि माणि त ढुंगू’।
हाँ जर्वत से ज्यादा रुढ़िपंथी जीवन तैं दुख कस्टों कि कुट्यारी बणे देन्दू। जिन्दगी
भर वा मनखी पूजा पाठै फंची बोकदू बोकदू थौक जान्द पर बिसौंण्यां कब्बी नि पान्दू। जादा
टूणि मुणी, बक्या पुच्छयारु वळू परिवार हमेशा दुखी रैन्दू। आध्यात्मिक शक्ति सच्ची
भक्ति से मिलद अंधभक्ति से ना। पेट खराब ह्वयूं छ त वेखुणी परेज अर दवे चैन्द न कि
मंदिर मा भंडारु। खैर अब नयीं पीढ़ी यीं च्वोळा चक्कर से भैर आणि या बी भलि बात छ, पर
यूँ तैं बी अपणी सच्ची सनातन संस्कृति कु पल्ला नि छोडयों चैन्द निथर जंगल मा कति परकार
का डाळा-बोट छाँ पर पच्छयाँण वे कि होंदी जु दूर बटिन नजर ऐ जावो।
बल ‘खैणी की माटू अर गैणी किन दोष‘ निकळी जांद। तो साब बक्यान बौडी
तैं बिगैर दोषो कख छोड़ण छयी, बक्याऽन बौडी तैं सरि पृथि घुमोणा बाद आखिर दौं एक त्रुप
कु पत्ता फेंकि ।
बक्या - ध्याणी ये भोट्या पर
सैद लग्यूँ बल।
खैर भेट पावोर त थकुळा उन्द ऐग्ये छै पर बक्यों कु सिधान्त होन्दन
कि क्वे बि गेख बिगैर दोष बतायूं खाली हाथ नि जाण चैन्द। परंपरा अर रोटी सवाल जु छन
निथर वृति बाड़ी खतम।
सैद कु नौ सूणी बुडलिन एक झटाक मा हाँ ब्वोली दीनि। किलेकि बौडिन नोना
खतिर अज्यूं तक एक सैद ही नि पूजी छायी बाकी अपणा धरम का घर्या अर बण द्यो नमाण मा
तैन ‘मुंड पताळ खुट्टा अगास कैर्याली छै’। आखिर हार मान माणि बुडळी आज मुड़ी गंगाड़ बटिन
इतगा दूर डांडा मुलुक अयीं छै। बल ‘नजीक कु जोगी दूर कु सिद्ध’ जु होन्दू’। यीं बक्ये
हाम सारा इलाका मा छै कि फलाण डाना गौं दिवानीराम ततकाल बक्या छ।
इलै बौडिन बि बिगैर छाळ-निवाळ करि खाली हाथ कने जाण छै। जब बक्या तै
आखिर मा हिन्दू द्यबता नि मिली त बौडी का संतोष वास्ता मुसलमान कु स यी। या ही छ रुड़ीपंथी
की अति। नोनु पर सैद् निकळणा बाद बुड़ळी रुण बैठग्ये परमेसुरों तुमुन अब ठीक पकड़ी वा
निर्भगी ननछना छौरों दगड गंगाजी नयेंण जांदू छै़, वखी निर्भगी मुसलमानों कबर बी छ बल।
भिज्यां लोगुन राति गंगजी छाला स्यता पैरवार घ्वड़ा सवार सैद दिख्यूं बल। वखी लगी ह्वलू
मेरा नोन्याल पर वा अबिन्डों खबैस।
ब्वला परमेसुरो ये कु न्यूज पूज। जु मागणु दयेणु तैयार छ, पर मेरु
नोनू कुबाटा बटिन सुबाटु अयूँ चैन्द। जश की पूजा द्योलु। पर! परमेसुरो कैन पूजण यु
सैद अर कनक्वे पुजण ? हमारा इने आज तक यु अबिन्डो खबैस कै फर नि लगिन।
बक्यान सैद पुजणे तरकीब बतायी। कि फलाण बाजार मा फलाण मुसलमान पुज्यारी
छ वेतैं मौलवी बोल्दन वींमा जयाँ वा सब बतै द्यूला, अफूं कर्दू वा कर्म कांड।
अब क्वे होर गैख नि छ त बक्यान अपणु द्यबता घरेंण वाजिब समझी अर वेन
एक लंबी किल्कताळ मारी होऽऽलक। मुंड मा द्वी
हाथ बांधी, मुंड भुयाँ टेकी, मुंड उठेन, मुख फर हाथ फिरेन अर नोर्मल ह्वे ग्यों। सब्यों
तैं सेवा लगै राजी खुशी पूछी किलेकि वा अब द्यबता भेष से मनखि भेष दिवानीराम ह्वेग्यूं
छै।
दिवानीरामल चा पाणी त नि पूछी किलेकि अज्यों बी घौर गौं समाज मा हरिजना
घौर बिठ खुल कर खांदा पीन्दा नि छाँ। न जाण कब तलक यू कुलक्षणि रिवाज खत्म ह्वोली।
हाँ दिवानिन अपणी नोनी तैं धै लगै सौंप सुपारी मंगेन। चिलम भरी अर उखम जति बैठ्यां
छाँ सब्यों कु आदर सौंप सुपारी अर चिलम से करि। बल सुखा नाज बर्जित नि होन्दू। अरे
सूखो नाज बर्जित नि होन्दू त गीला मा क्या जैर डाळयूं। वी आग वी पाणी, भांडी बर्तन।
छूवा छूते यीं कुपरथा कबारी खतम ह्वलि कु जाण। बजार मा त क्वे नि पुछदू कि क्वो छ,
क्या छ। यनु दोहरा चरितर ठिक नि। भगवान रामऽल त इनि नि करि वूंन सबरी बैर खुसी से खैन।
इनि धर्में दुकानदरि का कारण हिदुत्व दुन्यां मा उपेक्षा कु पात्र बणिन। अब समै ऐज्ञों इनि विरोधाभाषी रिवाज से भैर औणे।
वे दिन मि सुरु से आखिर तलक मि बौडी जांच पूछ दयखणु अर सुनु रौ। जान्दा
बगत बात चीत मा मिन बौडी तैं एक सांस मा पूछी कि बौडी तुमारू नोन्याल कति बडू छ ? क्या
कर्दू ? अर क्या ह्वे वेतैं ?
बौडी- (रुंवासी ह्वे) बाबू
बडूऽ छै वा खडौण्यां। द्वी नोन्यालों बुबा छ। यू ही निहोंण्यां यकुलो औलाद छ मेरी।
पर ! क्या कन बाबा तैकी मति खराब ह्वेगी। सर्री कूड़ी मुंड मा धरीं। निरासपंथ वळू काम
छिन कनु कु। नाती ब्वारी तैं डैली डमखाणु। मितैं अर अपणा बुबा तैं ज्यै-स्यै गाळी देणु।
अरे ! वा त बड़ी घौरे बेटी छन मेरी ब्वारी जु इत्गा सौंणी। ये खुणि बोल्दन भल सूत-ब्यैंत,
खानदान।
मि - बौडी क्या बीमार सिमार
नि छ आपक लड़का ?
बौडी - न बुबा ना बिमार-सिमार
नि छ वा निर्भगी। खूब खाणु पिणु अपणु ळदड़ू फानू। सुबेर अन्वेंण (कल्यो रव्टी) खै निरपट्
ह्वे जाणु तै कु बजार मर्छवाड़ी। वखी फुंड दिनभर रैन्दू डबखणु अर व्यखुन्दा हमेसा धुत्त
बणि औणु घौर। फिर क्या, सब्यों की निखाणी कनु परिवार मा एक हल्ला रौळी झगड़ा। बुबा तै
कुब्यसनऽळ तैंन मेरी गंगछाला सैरें जमीन मारछों मा गिरवी धैर्याली। मि ध्यान लगै सुणणु
छै बौडी बिदागत।
बौडी अग्ने अपणी दुख्यारु लगाणी रै। बुबा उन त मेरु लाटू बिल्कुल सिधूऽ
गौ मनखी छ। कैका ठड मुख नि चान्दू। मुख नि लगदु कै खुणि पल्या सौर बी नि ब्वन्यां,
पर तै मर्छवाड़ी पाणी प्येणा बाद वा मनखि… मनखी नि रौणु चा। पता नि क्या जी लगि तै फर,
कैन क्या करि, क्व जाण। मैंतें वीं दिन पता चली कि ममता इत्गा अंधी होन्दी।
अग्ने बौडिन द्वी हाथौन चटमताळी
मारिन। अरे मित ब्वनू सचु भगवान ह्वलू त वे कु पट निर्बीजो निरासपंथ हुयाँ जु मेरी
घरकुड़ी नि ह्वोण देणु।
मिन बात बडै ब्वोली, बौडी तु
ब्वनी सीधू छ, पर ! कबैरी तलक ?
बौडी - बुबा जबैर तलक वा तै
मार्छोंक मूत दारू नि प्येणु।
मिन ब्वली बौडी सुबेर दस बजी
बटिन वा मर्छवाड़ी पड़यों रैन्दू, ब्यखुन्दा धुत बणि औणु, रात दस इग्यारह बजि तक ड्रामा
कनु अर सुबेर आठ बजे उठणु। तऽऽ. इन ब्वाल कि
चैबीस घंटा मा वा केवल सुबेर द्वी घंटा आठ से दस बजि तक ही सीधू गौ समान छ ?
बौडी - हों बुबा सच्ची। ठिक
ब्वनु तु।
मिन बोली बौडी तै फर कुछ लग्यूँ-बिलक्यों नि। क्वी द्यबता मसाण, सैद-सूद
नि छ। तै फर वा मर्छवाड़ी पाणी लग्यूँ बौडी, मर्छवाड़ी पाणी। पूज सकणा त तैकु तै दारु
पुजाऽ तैकु दारु इलाज करावा मलप तैकी लत बंद करावा। बाकी सब ठिक ह्वे जैलू। किले छाँ
तुम ये पूछ-जांच मा ढफकणा। बौडिन बोली बुबा तु बी ठिक छ ब्वनू पर बिगैर कुछ लग्यूँ-बिलक्यों
इनि थ्वोड़ि कन छै तैंन।
बौडी अपणी एकढयपुल्या बात पर अडीग छै। किलै कि समाजै अति रुडीवादिता
आदिम तै क्वै हैकी बात स्वीकार नि कन देन्दी। ना कब्बी स्वोची कि इन बि कारण ह्वे सकदू।
आम देहात मा आज बी समाज का अंर्तमन मा मेडिकल साईन्स ना बल्की देवी द्यबता, भूत-पिचास,
खबैसों कु दोस अर घात जैकार ही बैठयूं छन। सक संका हैकी बात अंगीकार नि कर्दी।
तब ब्वला इत्गा सीधू छ हमारु समाज जख कुब्यसन लत बी कुछ लग्यों-बिलक्यों
कु कारण माने जांद। नोनू छ लोफर महा झांजी अर ब्वै छिन डफखणि बक्या पुच्छयारा मा।
मिन आखिर बात मा बौडी तैं ब्वोली, बौडी तु नि माण्दी तेरी सही पर सच्ची
बात या च कि तैकु छाळ निवाळ द्यो द्यबता बक्या पुछैरुं मा नि बल्कि यमराज मु जरुर च।
मेरी इनि खड़खड़ी बात सुणी बौडिन मेरु ही छाळ निवाळ कैर दिनी। बल कैकु छ तु यनु कुबीज,
यमराजा यख जयां त्वै मास्ते कुटुम्दरी अर मि अपणु सी मुख ल्ये वख बटिन निकळग्यूं।
मर्छवाड़ी – मार्छा/ भोटिया बस्ती
छाळ निवाळ -शंका समाधान
@ बलबीर राणा ‘अड़िग‘
मटई चमोली 9871469312
https://udankaar.blogspot.com/
वाह अडिग जी आनन्द ऐ ग्या बाँचिक या बिगरैली भाषा मा गंठयेयीं कानि ! भौत बढ़िया कानि अर दगड़ा दगड़ जबरदस्त संन्देस भी ! 👌👌
ReplyDeleteबढ़िया... 🙏
ReplyDelete🙏👏👏👌🌺 ,,, बढिया कानि
ReplyDeleteधन्याबाद आदरीण ममगांई जी, सुनिता जी और भुला सते, आपक सबल मेरी कलम तै टौनिक छ।
ReplyDeleteबहुत सुदंर बढिया कहानी 👏👏👏💐💐💐🙏🙏🙏
ReplyDeleteसादर प्रणाम गुर्जि
ReplyDeleteभौत बढ़िया कहानी 👌👌💐