धर्ती पर जीवन संघर्षों वास्ता च, आराम त यख बटिन जाणा बाद, ना चै किन बी कन पड़ल, ये वास्ता लग्यां रावा, जत्गा देह घिस्येली उत्गा चमक, उत्गा संचय जु यख छुटलू। @ बलबीर राणा 'अडिग'
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Sunday, 25 August 2019
Thursday, 22 August 2019
बस्योरा दिनों की बात
चला जादा छुवीं ना मिसै कि
मि बि अपणा समै इस्कुल्या परम्परौ इनु किस्सा नयां छंवाली तक पेंछाणों परयास कनौ छौं, ज्वा काम आज हम चाणा बाद बि नि कैर सकद। ये मा कैकु क्वी
दोष नि बल्कि मितैं बदलो परभो दिख्येणु। वर्तमान शिक्षा का ये व्यवसायिकण कालखंड
मा शिक्षै पूरी अन्न्वारै बदलिग्ये पैलि आर्थिक रूप से गरीबी त जरूर छैं छा पर लोग
ज्यू मन का धनी छा अर ये धन मा सबसे बड़ो धन छायो अपणुपन, जु आज क्वसों दूर
दिख्येणों। यो अपणापनै एक मिशाल छै इस्कूला मास्टरजि अर गौं वलूँ कि। जख गुरुजि
सिद्धहस्तता से नौनों तैं पढान्दा छा अर लोग गुरुजी कि तन-मन-धन से सेवा भक्ति
करदा छा। सेवाकर्मैं यी श्रणि मा एक काम छायो
नौंन्याळों स्कोल मा बस्योरा जाण। हमारा स्कूल मा ये पर्था सन छ्यासी मेरा पांचवीं
पास होंणा बाद द्वी तीन साल तक रैयी ह्वली ज्वा तख देशी मास्टरणी जीका औणा बाद
हर्चिग्ये छै। दगड मा गुरुकुल पर्था को आखरी अंश निबटि गै छौ।
सटीक त याद नि पर सन चौरासी से
पैलि कक्षा आठ अर अठ्ठासी तक पाँचें बोर्ड परीक्षा होंदि छै। हमारा यख तै टैम पर
बोर्ड परीक्षा वाळौं तैं गुरुजि राति इस्कूल मा पढ़णा वास्ता बसैरु बुलौंदा छा। देर
रात तलक गुरुजि हम नौन्याळौं पढ़ै लिखै समाज संस्कृति अर संस्कारवान बण्णें शिक्षा
बि देंदा छा। जख स्यणकरा नौनौं तैं यो बसैरु सजा सि कम नि छौ वखि हुणत्यळौं तैं
राम बुटी छै। बस्योरा (बसेरा) वा एक साल मेरी जिंदगी कु इनु समै छै जैकु ऋण देण
नामुमकिन छ।
जख अजक्याल ट्यूशन या
एक्स्ट्रा क्लास मा घंटाभर पूरो होण पर मास्टर सवाल तैं अद्दा छोड़ी बच्चों कि
छुट्टी कैर दुसरा दिन पर छोड़ी देन्दन वखि हमारा गुरुजि एक सवाल पर राति बारा बजै
देंदा छा। उन त आज बि कतगै गुरुजि इनि
निस्वार्थ विद्या सेवा मा लग्यां छन। इना सरस्वत्या सेवकों तैं खुट्टा बानी सेवा
लगोन्दो। अपणा ये संस्मरण का माध्यम सि मि
अपणा गुरुजी स्वर्गीय श्री विश्वेस्वर दत्त गौड़ जी अर श्री केसर सिंह बोरा जी तैं
सेवा लगोन्दो जौंका अतुल्य परतापन आज मितैं दुन्यां दयखण लैख बणै।
मेरु बसेरौ काल उन्नीस सौ छयासी
छौ। कत्गा याद तै समये छन जौं तें याद करि आज बि मन वे ग्यारह सालो बालक बण जांद।
हम सब पाँचा विद्यार्थियों को बिस्तरा भादो मैना बाद इस्कूल मा ऐ जांदो छौ। बिस्तर
बि अजक्यला जन म्वटि रजै गद्दा ना बल्कि एक दौंखि या दरी, एक चादर, एक-आद कमोटू/कंबल। वे टैम पर बिजलि नि छै सब्यों अपणी डिबरि
लैंयीं रौंदी छै, जौं घौर मा मट्टी तेलै समस्या रैंदि छै सु हैका
दगड़ एडजस्ट ह्वे जांदो छै। जाड़ोंक दिनों मा कमरा ळिातर आग जगोंदा छा। लखड़ों क्वे
कमि नि होंदी छै। छ्वटि क्लास वळा एक-एक लखड़ो अर पांच वाळा साम-सुबेर द्वी द्वी
लखडा दगड़ लांदा छा। जौंका घौर मा लैण रैन्दु छौ वा गिरेवाटरै शीशी पर दूध लौंदो
छै। भुज्जी, घर्या दाल, चौंळ अर घ्यू लोग श्रद्धा
से गुरुजि तैं देंदा छा।
नौनि लकार वळी होंदी, वो व्यखुंनिदा गुरुजि खाणौं बणाण मा मदद कर्दा अर हम नौनौं
ड्यूटि भांडा मज्यांण पर लगी रैन्दी छै।
जनि गुरुजिन बोली जावा रे लड़को, उन्नी हमारि रेस उसैन बोल्ट से बि तेज होंदी छै
भडडु दाळ वास्ता, किलेकि जौ पैलि पौंछदू छौ वैको हक़ होंदो छौ भडडु
फर। गुरु रसोई का भडडु दालौ जन स्वाद आज पांच सितारा होटल मा तक नि चितायी। राति पढ़ै का बगत जैतैं निन्द औंदि
वैकि सजा छै भैर इस्कूला कोणा पर खड़ो होंण जख बटिन गदेरे स्यूंस्याट अर मिडखों
टटराट सुणेन्दू छौ, वे गदेरो मसाणों तमाम किस्सा सब्यों तैं पता छै
फेर कैकि क्या मजाल जो खड़ा होणा डैरन स्ये जावो। इनि एक दिन एक ढांट नौनु भैर बटिन
गुम ह्वेगि छै। द्वी गुरुजि राति ढूंडद ढूंड्द परेशान ह्वेग्या छा। सुकर ह्वो बाद
मा वको बुबा वे तैं घौर बटि वापस ल्येन तब गुरुजि मुखड़ी पर संतोष आयि। सु ढांट इले
कि वा भै पाँच क्लास मा सोलह सालों ज्वान छौ अर ज़रा सीधो लाटो छौ हम सब वे तैं ढांट ब्वल्दा छा।
हमारा गौड़ गुरुजी उम्रदराज
अर नजीक गौंका रौण वळा छा अर बोरा जी ज्वान नयां-नयां मास्टर, सि अल्मोड़ा का छा, बड़ा गुरुजी जरा शांत सुभौ स्वभो का छा पर गुस्सा औण पय्यां
स्वटै बदिन चटम चटेल देंदा छा, ज्वान गुरुजी गुसैला पर मार्दा कम छा, द्वियों मा पढ़ाणैं होड़ रैंदि छै। कबि रातिम जब नौना निन्दन
डगमग कन्न लग जांदा छा त गुरुजि लोग किस्सा कानी सुणौंदा छा। कानी पर सब्यों कि
आँखि टक टककार अर कंदुड़ा खड़ा रैंदा छा। कब्बि-कब्बि पढ़ै पैटर्न बदलणा अर जिज्ञासा
वास्ता गीत, काथा चुटकिलों को कंपीटिशन रखदा छा। ब्यखुन्दा
सब्बि विद्यार्थी अपणा घौर बटिन खाणु खै आंदा छा। कब्बि-कबार क्वै बासी भात खै
संतोष करदु छौ। गुरुजि लोग सब्यों तैं जरूर पुछदा छा, अरे लड़को खाणु खायि नि खायी रे। बासी भात वळौं तैं गुरुजी पक्का रोटी खलान्दा छा। जाड़ों रात एक
टैम चा पक्की मिल्दी छै। चा मा गुड़ौ ठुंगार भी चल्दु किलैकि गिरेन मा चीनी कम आदि
छै। बार-त्यवार मा गुरुजि कैका वख जाऊं कख ना, फिर बुज्यड़यूं ढेर लग जांदि
छै। हैका दिन हम सब घर-घर का स्वाळि-पकोडयूं स्वाद लैन्दा छा।
इनि नि छौ कि केवल पड़ै-लिखै
अर संस्कारों वळि बात होंदी होली, मौका मिळण फर बाळापनौ उकत्याट कख शांत बैठ सकदु।
जरा सि गुरुजि भैर या इनै-उनै क्या लगि हमारु खिखच्याट शुरु, कब्बि-कब्बि त ये खिखच्याट को रुप फौन्दरी मा बदल्योण बैठ
जांद छौ। फौन्दर्या बि इन कि कंठी त पकड़यालि पर हाथ क्वी न उठौ। एक ब्वनु बेटा
पैलि मारिक देखौ त हैकौ ब्वनु तु दिखो अर द्वी बळ्द जना म्यटयां रैन्दा। दुसर मा आग मा घस्येड़ु डाळण वहौं कमि नि।
कब्ीि-कब्बि फौन्दरी ये काम मा नौनि जरा हिम्मत वळी होंदी छै, स्या नौना फा एक-आद झपाक मारि भैर भाजी जांदी छै।
कब्बि-कब्बि बोरा गुरुजि चुपचाप भैर किवाड़ बटि मजा ल्येन्दा छा। जब गुरुजि तैं लगि
जांद कि बात बढ़ण वळि छ त वो खांसी कैरि बोल्दा छै ऐ बच्चों क्यों हल्ला कर रहे हो ? गुरुज्या भितर औण से हि सिकैतै झमाझम बर्खा, जी इसने पैलि मेरे को माँ की गाळी दी। ना गुरुजी इसने पैले
बोला कि तेरा बाप कल्यो खाव्वा बल। गुरुजि इसने मेरी कौपि मा स्यायी फरायी। गुरुजि
इसने ही पैलि बळद उज्याडै बात छैड़ी। पता नि कथगै परकारे सिकैत हौंदि छै जौं तैं
गुरुजि एक स्वट्या मा निबटै देंदा छा।
@ बलबीर राणा ‘अडिग’
मटई चमोली
Tuesday, 13 August 2019
Saturday, 10 August 2019
अडिग शब्दों का पहरा: सरहद से अनहद
Sunday, 4 August 2019
समै-समै की बात
तुमुळ क्या जाण
प्यार पिरेम मा
रोणु रूसाणु
ज्यू का जज्बात
मन की बात
ज्यून्दा रैन्दा छाँ
जिन्दगी भर
वे कागजोंsक जमाना मा
इन नि होंदी छै
अंगुल्यों बदिन
स्वां डिलीट
जिंदगी भरे यादें।
@ बलबीर राणा 'अड़िग'