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Sunday, 26 May 2019

ढै बीसी पार



सफेदी ऐ जांदी कंदुड़ा आस-पास,
मथि सफाचट या बच्यां/खुच्यां उदास।

आंख्यों का तौळ काळी लकीर,
मुख अनुभौ, ज्यू  धृगम/धीर।

जिमेदरि फंची से ढळक्याँ कांधा,
मौ मदद अत्यड़ा बड़णे रांदा। 

पुटुग उड़्यार या, थळथमकार, 
तौळी/मौळी चीजों से खट्टा डकार। 

टंगडों की सक्या कमती ह्वे जांदी,
पर, मन ज्यू कि सक्या बड़णी रांदी।

कुटमदरी सुख खातिर जतन जोड़,
सब्बि जगा अपणा ही हड़गा मरोड़।

गिरस्थी का  होर पोर अफूं रिंगणु रैंदू 
घर समाजा का बीच धिक्याणु रैन्दू। 

भितरै कष्ट पीड़ा दंत कीटी सैंणु रैन्दू
ठिक छौं ब्वोली भैर मुलक्येणु  रैन्दू।

भल का वास्ता घिसण/घिसाणु
ब्वलयूँ माना रे, हर बगत बिंगाणु।

अफूं से बड्या तौंकी होणी खाणी आशा
ढै बीसी पार मनखी अभिलाषा।

*@ बलबीर राणा 'अड़िग'*