उन त श्री गिरीश सुन्द्रियाल जी फर ल्यौखणां वास्ता मेरी अवोध कलम अज्यूँ अजाण छ पर अपणी अडिगता से बोली सकदू कि अगर आपक हिया मा अपणी लोकमाटी वस्ता सच्चिगौ पिरेम अर श्रद्धा छ त आप गिरीश सुन्द्रियाल बणि सकदन। आज सुन्द्रियाल जी हमारा लोक मा कै नौ का मोताज नि छन। विशुद्ध लोकतत्व आपै कलमें पच्छयाण छ, गीत, कविता, कानी, संस्मरण, शोधात्मक आलेख, निबन्ध, मुखाभेंट साक्षात्कार आदि साहित्यै क्वी बि विधा इन नि छ जैफर आपन अपणा सृजन का बीज नि बूतिन हो, बूती ही नि बल्कि आज आपक सृजनों डाळौ पन्द्रा से मथि पोथियूँ रूप मा पल्लवित ह्वै झकमक्कार बणि फूलणूं फलणूं छ।
हिन्दी मा एक कावत छन कि ‘हाथ कंगन तैं आरसी क्या, पढ़यां लिख्यां तैं फ़ारसी क्या’ ? मि त अब जरोरत मैसूस कनु कि गिरीश भै का साहित्य पर शोधौ बगत ऐगे। कै साहित्यकार का साहित्य मा लोक तत्वै गैरे सुद्दी नि दिखेन्दी, असली लोकसृजन तैं लोक जीवन तैं काटण यी नि बल्कि ज्यूण पड़दू, भुगतण अर बौकण पड़दू तब जु पसिना लारा धारा बगदा सु जान्दन वीं डाळी जौड़यूँ तक गैरा। तब फूळदी डाळी तब लगदा फल। उमर का इतिगा कम समै मा गढ़वळी साहित्य मा ज्वा सृजन श्री सुन्द्रियालजिन करि वा वूंतैं आम से खास बणोंणा वास्ता भौत छ। अपणा स्वतंत्र लेखन का अलौ उत्तराखण्ड लोकभाषा इस्कोल पाठयकम्र तैयार कन, चिठ्ठी पत्री, अंज्वाळ अर गढ़वळी लोकगाथाओं जना पोथियूँ संकलन अर संपादन, गढ़वळी का नवांकुर कलमकारों पोथयूँ मा भाषीय अर व्याकरणीय फ्रूफ रिडिंग कन जना काम आपक निस्वार्थ साहित्य स्यवै औनार छ, यीं सेवा परताप उत्तराखण्ड सरकारन बि आपतैं ”उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान 2023“ द्ये सच्चा साधक को मान बड़ायी।
यीं रैबार मा श्री सुन्द्रियालजिका पूरा साहित्य तैं नि बिरै सकदू पर इतिगा बोली सकदू कि हमारी मातृभाषा संवर्धन संरक्षण मा आपौ सृजन अविच्छिन्न छ, गढ़वळी साहित्य मा आप जुगों तलक जुगराज रैला। उत्तम सृजनात्मकता अर मयाळा कंठ का रूप मा आप फर माँ सरस्वती अर माँ वीणा कु असीम वरदहस्थ छ, मैं क्या पूरो गढ़वाळ मुरीद छन आपक कृतत्व कु। समग्र कृतत्व का ऐथर बड़ी प्रेणा द्यौण वळी बात यु छ कि जख आज हमारो आम लोक समाज पाश्चात्य रंग का तरफां भाजणूं तख पूरी सुन्द्रियाल मवसि अपणा लोक तैं सींचण फर मैसीं छ। हमारा लोकसाहित्य का सशक्त हस्ताक्षर श्री सुन्द्रियाल जी सबसे पंसदीदा सृजन विधा गीत छ, यीं सृजनै अग्नै लपाग मा आपा गीत संग्रै ”आला उज्याळा दिन“ का वास्ता भौत भौत बधै अर शुभकामना। यीं काराकोरम पास चैना बोर्डर बटे भरोसु नि बल्कि यकीन करदो कि आप जना साधकों परताप हमारी भाषा मा उज्याळा दिन जरूर आला।
हिन्दी मा एक कावत छन कि ‘हाथ कंगन तैं आरसी क्या, पढ़यां लिख्यां तैं फ़ारसी क्या’ ? मि त अब जरोरत मैसूस कनु कि गिरीश भै का साहित्य पर शोधौ बगत ऐगे। कै साहित्यकार का साहित्य मा लोक तत्वै गैरे सुद्दी नि दिखेन्दी, असली लोकसृजन तैं लोक जीवन तैं काटण यी नि बल्कि ज्यूण पड़दू, भुगतण अर बौकण पड़दू तब जु पसिना लारा धारा बगदा सु जान्दन वीं डाळी जौड़यूँ तक गैरा। तब फूळदी डाळी तब लगदा फल। उमर का इतिगा कम समै मा गढ़वळी साहित्य मा ज्वा सृजन श्री सुन्द्रियालजिन करि वा वूंतैं आम से खास बणोंणा वास्ता भौत छ। अपणा स्वतंत्र लेखन का अलौ उत्तराखण्ड लोकभाषा इस्कोल पाठयकम्र तैयार कन, चिठ्ठी पत्री, अंज्वाळ अर गढ़वळी लोकगाथाओं जना पोथियूँ संकलन अर संपादन, गढ़वळी का नवांकुर कलमकारों पोथयूँ मा भाषीय अर व्याकरणीय फ्रूफ रिडिंग कन जना काम आपक निस्वार्थ साहित्य स्यवै औनार छ, यीं सेवा परताप उत्तराखण्ड सरकारन बि आपतैं ”उत्तराखंड साहित्य गौरव सम्मान 2023“ द्ये सच्चा साधक को मान बड़ायी।
यीं रैबार मा श्री सुन्द्रियालजिका पूरा साहित्य तैं नि बिरै सकदू पर इतिगा बोली सकदू कि हमारी मातृभाषा संवर्धन संरक्षण मा आपौ सृजन अविच्छिन्न छ, गढ़वळी साहित्य मा आप जुगों तलक जुगराज रैला। उत्तम सृजनात्मकता अर मयाळा कंठ का रूप मा आप फर माँ सरस्वती अर माँ वीणा कु असीम वरदहस्थ छ, मैं क्या पूरो गढ़वाळ मुरीद छन आपक कृतत्व कु। समग्र कृतत्व का ऐथर बड़ी प्रेणा द्यौण वळी बात यु छ कि जख आज हमारो आम लोक समाज पाश्चात्य रंग का तरफां भाजणूं तख पूरी सुन्द्रियाल मवसि अपणा लोक तैं सींचण फर मैसीं छ। हमारा लोकसाहित्य का सशक्त हस्ताक्षर श्री सुन्द्रियाल जी सबसे पंसदीदा सृजन विधा गीत छ, यीं सृजनै अग्नै लपाग मा आपा गीत संग्रै ”आला उज्याळा दिन“ का वास्ता भौत भौत बधै अर शुभकामना। यीं काराकोरम पास चैना बोर्डर बटे भरोसु नि बल्कि यकीन करदो कि आप जना साधकों परताप हमारी भाषा मा उज्याळा दिन जरूर आला।
बलबीर सिंह राणा ‘अडिग’
द्वारा 56 सेना डाकघर
No comments:
Post a Comment