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Thursday, 26 March 2015

चिपको प्रेणता गैरा दीदी की धै -----------------------------------


कुल्याडु ल्येकी कख जाणु रे
कै मुल्क कु तु कसाई रे
अपणा त क्वे नि इन निर्दयी
तु जरूर सरकार को पाल्यों रे
हाथ लगे देख जरा अजमाईस कर
हाथ टंगडा तोड़ी द्योला तेरा रे
भाज अपणी डोफलि टोफुलि ल्येकी
पिछने मुडिक ना द्येख रे
यु डाला मेरा आस छन
औलाद भी यु ही रे
हाथ लगे दिखो जरा
तेरी फिर खैरी नि च रे
मेरी अंग्वाल मेरा भोल पर
धरती की यु धरोहर रे ।
चिपका छोरों दीदी भुल्यों
चिपका बैख नमाण रे
डाला कटला या हम कटला
यूँ कु सास देखला रे।

रचना: बलबीर राणा अडिग"

Saturday, 14 March 2015

महान चित्रकार बी मोहन नेगी


हैंसदी मुखडी  दाढ़ी लाल
कलम कुचिल लेखदु सब्युं कु हाल
चित्र साधना मां लीन वा यति
जीवनक सुलझान्दू जटिल सवाल।
श्रद्धा से  शीष झुकता है उस तपस्वी के लिए जो सम्पूर्ण जीवन कला साधना के माध्यम से संसार को हर पल नईं ऊर्जा से लबरेज रखता है । आध्यात्मिक शुचिता और व्यसनों से मुक्त, भारतीय ऋषि परम्परा का निर्वहन करते हुए एक अनोखा संयमित जीवन जीने वाला चित्रकार जो कभी भी चर्चा में रहने को लालायित न रहा और न रहना चाहा। उनकी कला साधना जीवन की उस  गहराई को नापती है हुयी जड़ तक जाती जहाँ से वास्तविक जीवन को पोषण मिलता है न्यौछावर क्या होता न्यौछावर की असली परिभाषा जाननी हो तो भैजी श्री बी मोहन नेगी जी की कुचि और रंग सहज चंद मिनट में बता देती है।  बिना राजनैतिक पक्षधरता के,चाटुकारिता से दूर अपनी कुटिया में जीवन सार संचित करता एक महान कलाकार बिना स्वस्वार्थ के कर्म पथ पर अडिग खड़ा रहता है लाभ हानि से बिरक्त सत्ता के गलियारों में अपनी पहचान अंकित करने या सत्ताधीशों को रिझाने की छटपटाहट सोयी रही जगी रही वो चेतना जो मात्र कर्म जानती है फल नहीं ।छोटे पहाड़ी कस्बों में कला साधना में डूबा बड़ा चित्रकार। आज हजारों कविता पोस्टर के साथ चित्र कला के कई नव सृजित कलाकृतियां अपने जीवन के पन्नों में चित्रित कर चुके हैं जो युगों तक देव भूमि  उत्तराखंड  की भूमि में महकती रहेगी चमकती रहेगी ।निरन्तर सक्रीय और लगातार लगातार दिन रात लगन में मगन । भगवान् ने कौन सी देह बनायी है । भैजी श्री बी मोहन नेगी जी को लगभग युवावस्था में आने के बाद ही जाना मुलाक़ात आज भी तरस्ती है लेकिन उनकी चित्रकला का अवलोकन साहित्य क्षेत्र में आने के बाद ज्यादा रहा हर चित्र में पहाड़ और पहाड़ की संस्कृति की नईं झलक दिखती है  एक दिन की भी कला साधना को बिराम देना उन्हें अखरता है। इतने लम्बे समय तक बिना किसी रिटर्न के, न दाम और न उनके योगदान के मुकाबले का कोई बड़ा सम्मान, निरन्तर कला साधना में रत रहना बिरले ही लोगों के बस का है। बिना किसी फायदे के पूरा जीवन खपा देना गृहस्थ के बस का नहीं लेकिन उन्होंने गृहस्थ की अच्छी पारी खेलने के साथ कला की पिच को बखूबी सम्भाला और अभी सिर्फ प्रथम पारी का खेल मानते हैं डाक सेवा से सेवा निवृत्ति के बाद की अभी महत्वपूर्ण मानते हैं ऐसे महान साधक कविता पोस्टर विधा के महान चित्रकार श्री बी मोहन नेगी जी को कोटिस नमन। 
आपका प्रसंशक :- बलबीर सिंह राणा 'अडिग' मटई बैरासकुण्ड चमोली

Tuesday, 3 March 2015

ऐगे वा होरी


ऐगे वा होरी
याद कंठ-कंठ तक भोरी भोरी
ज्यु मां उमाल च
मन मां उलार च
कै मां डालुला रंग
कु आलो संग
जौला देली- देली
भटकुला मोरी- मोरी
गीत लगौला
प्रीतक अंग्वाल भरुला
पर !
वु बाळापन अब नि रायी
ना माया को वु जमानु रायी
भटकणु छै यु पराण आज भी
गौं गल्यों धोरा आज भी
जख होरी का नबाब बणि
बक्सट बण्यां रैन्दा जणि
ब्वे व्यखुन्दा मुंड पलासी
दैन्दी छै होरी तें गाळी।

@बलबीर राणा 'अडिग'